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घर के कामकाज में केवल 7 फीसदी पुरुष ही बंटाते हैं हाथ

भारत में पितृसत्तात्मक सामाजिक प्रणाली होने के कारण घर के कामों की जिम्मेदारी महिलाओं के ही जिम्मे हैं। लेकिन शहरों में एकल परिवार और कामकाजी महिलाओं की संख्या बढऩे के साथ ही अब घर के कामों को बांटकर करने की प्रथा भी चल पड़ी है। दरअसल, यह स्त्री-पुरुष के बीच काम के बंटवारे की नहीं बल्कि समानता की लड़ाई है।




हाल ही 8500 से अधिक ब्रिटिश शादीशुदा जोड़ों पर हुए एक अध्ययन में भी यह बात सामने आई है। अध्ययन में पाया गया कि 93 फीसदी ब्रिटिश महिलाओं में से अधिकांश घर के काम अेकेले ही करती हैं।

यहां तक कि पति-पत्नी दोनों के नौकरी करने पर भी पांच गुना संभावना यह थी कि महिलाओं को घर के कामकाज में सप्ताह के 20 घंटे से ज्यादा खर्च करने पड़ते हैं। इतना ही नहीं, घर के कामों के अलावा, बच्चों और बाजार से जुड़े काम भी उन्हीं के हिस्से होते हैं।

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बस 5 घंटे देते हैं पुरुष

अध्ययन में शामिल जोड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जब घर के काम को बांटकर करने का समय आता है तो पुरुष कामकाज से बचते हैं।

पुरुष सप्ताह में 5 घंटे से भी कम समय घर के कामों को देते हैं। जबकि महिलाओं की तुलना में यह केवल आठ प्रतिशत है। जबकि केवल 7 फीसदी पुरुष ही अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर घर के कामों में मदद करते हैं।

बिना सैलरी का काम



लंदन यूनिवर्सिटी कॉलेज से अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता प्रोफेसर ऐनी मैकमुन्न का कहना है कि यह अतिरिक्त काम है जो महिलाएं मुफ्त में कर रही हैं। क्योंकि समाज ने घर के काम को अवैतनिक और महिलाओं की ही जिम्मेदारी मान लिया है।

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कामकाजी महिलाएं ऑफिस से घर आती हैं तो घर के काम के रूप में 'सेकंड शिफ्ट' में लग जाती हैं।

ऐसे किया अध्ययन

शोधकर्ताओं ने समूह को रोजगार, घरेलू कामकाज और जिम्मेदारियों के आधार पर आठ समूहों में बांट दिया। सबसे बड़े समूह में पांच में से हर दो जोड़े कामकाजी पति-पत्नी के थे।

शोधकर्ताओं को यह जानकर बहुत हैरानी हुई कि ३ फीसदी पुरुषों की तुलना में ऐसी कामकाजी 16 प्रतिशत महिलाओं ने भी सप्ताह के 20 से ज्यादा घंटे अकेले काम करने में बिताए।

वहीं 6 फीसदी ऐसे जोड़े जहां महिलाएं घर की मुख्य कमाने वाली सदस्य थीं या 1 फीसदी ऐसे घर जहां पति हाउस हसबैंड की भूमिका में थे वहां या तो काम समान रूप से बंटा हुआ था या पुरुष ज्यादा काम करते थे।

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